Tuesday 9 December, 2008

दिवाकर की हैट-ट्रिक से भारत जीता


कैप्टन दिवाकर की हैट-ट्रिक की बदौलत भारत ने मंगलवार को ब्यूनस आयर्स में खेले गए अंडर 21 के शुरुआती मुकाबले में वर्ल्ड चैंपिअन अर्जेन्टीना पर 3-2 से जीत दर्ज की।

भारत को अर्जेन्टीना के तूफानी प्रयासों और शानदार डिफेंस से हालांकि शुरू में परेशानी हुई, लेकिन खिलाड़ी अपनी तेजी से बराबरी करने में सफल रहे। दिवाकर ने नौवें मिनट में पहला गोल दागा और फिर 10 मिनट बाद पेनल्टी कॉर्नर से इसे दोगुना कर बढ़त को मजबूत किया। भारत ब्रेक से पहले 2-0 की बढ़त बना चुका था।

दूसरे हाफ में भारत ने 55वें मिनट में इस बढ़त को 3-0 कर दिया, जबकि अर्जेन्टीना ने 64वें और 67वें मिनट में गोल कर इस अंतर को कम किया। इससे पहले मिडफील्डर विकास शर्मा ने भारतीय फॉरवर्ड जय करण के लिए सर्कल के भीतर गोल करने का एक बेहतर मौका बनाया, लेकिन नाहुल सालिस ने उनकी राह में बाधा पहुंचाई। जिससे दिवाकर ने पेनल्टी कार्नर पर नौवें मिनट में ड्रैगफ्लिक से गोल किया।

नवभारत टाईम्स से साभार

Saturday 29 November, 2008

जीत ली आतंक पर जंग.....

नरीमन हाउस को आतंकवादियों से खाली करवा लिया गया है॥यह घोषणा सुनते ही वहां मौजूद लोगों ने जय-जयकार शुरू कर दी। मुझे यकीन है टीवी के आगे बंधे बैठे पूरे मुल्क के बहुत सारे लोग उस जय-जयकार में शामिल थे। मैं नहीं था। चाहते हुए भी नहीं...बल्कि मुझे तो शर्म आ रही थी। मरीन हाउस के ' गौरवपूर्ण ' दृश्यों को दिखाते टीवी एंकर बोल रहे थे – यह गर्व की बात है , हमारे बहादुर जवानों ने आतंक पर एक जंग जीत ली है , नरीमन हाउस पर कब्जा हो गया है। नीचे न्यूज फ्लैश चल रहा था – नरीमन हाउस में आतंकियों का सफाया...दो आतंकी मारे गए...पांच बंधकों के भी शव मिले... एनएसजी कमांडो शहीद।
किस बात पर गर्व करें ? पांच मासूम जानें और बेशकीमती सैनिक खो देने के बाद दो आतंकवादियों के सफाए पर ? 10-20-50 लोग मनचाहे हथियार और गोलाबारूद लेकर आपके देश में घुसते हैं। जहां चाहे बम फोड़ देते हैं। खुलेआम सड़कों पर फायरिंग करते हैं। आपकी बेहद आलीशान और सुरक्षित इमारतों पर कब्जा कर लेते हैं। आपकी पुलिस के सबसे बड़े ओहदों पर बैठे अफसरों को मार गिराते हैं। सैकड़ों लोगों को कत्ल कर देते हैं। आपके मेहमानों को बंधक बना लेते हैं। आपकी खेल प्रतियोगिताओं को बंद करवा देते हैं। आपके प्रधानमंत्री और बड़े-बड़े नेताओं की घिग्घी बांध देते हैं। तीन दिन तक आपके सबसे कुशल सैकड़ों सैनिकों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलते हैं और इसलिए मारे जाते हैं क्योंकि वे सोचकर आए थे...इसे आप जीत कहेंगे ? क्या यह गर्व करने लायक बात है ?
आपको क्या लगता है , देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला करनेवाले आतंकवादियों को मारकर आतंक के खिलाफ यह जंग हमने जीत ली है ? हम इस जंग में बुरी तरह हार गए हैं। उन लोगों ने जो चाहा किया , जिसे चाहा मारा , जिस हद तक खींच सके खींचा। आपको क्या लगता है , बंधकों को सेना ने बचाया है ? जब वे होटलों में घुसे तो हजारों लोग उनके निशाने पर थे। वे चाहते तो सबको मार सकते थे। उनके पास इतना गोला-बारूद था कि ताज और ओबरॉय होटेलों का नाम-ओ-निशान तक नहीं बचता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इंतजार किया कि पूरी दुनिया का मीडिया उनके आगे घुटने टेक कर और जमीन पर लेटकर यह दिखाने को मजबूर हो जाए कि वे क्या कर सकते हैं। उनकी चलाई एक-एक गोली पर रिपोर्टर्स चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे – देखिए एक गोली और चली। इसे आप जीत कहेंगे ?
यह देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला था...1993 के बम ब्लास्ट के बाद भी यही कहा गया था। जब वे हमारा जहाज कंधार उड़ा ले गए थे , तब भी यही कहा था। संसद पर हमला हुआ तब भी यह शब्द थे। अहमदाबाद को उड़ाया था , तब भी सब यही सोच रहे थे। दिल्ली , जयपुर , मुंबई लोकल...हर बार उनका हमला बड़ा होता गया...क्या लगता है अब इससे बड़ा हमला नहीं हो सकता ? बड़े आराम से होगा और हम तब भी यही कह रहे होंगे। क्या इसका इलाज अफजल की फांसी में है ? क्या इसका इलाज पाकिस्तान पर हमले में है ? क्या इसका इलाज पोटा में है ? आतंकियों ने अपने ई-मेल में लिखा था कि वे महाराष्ट्र एटीएस के मुसलमानों पर जुल्म का बदला ले रहे हैं। वे गुजरात का बदला ले रहे हैं। वे आजमगढ़ का बदला ले रहे हैं।
वे धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं। भले ही उनकी गोलियों से मुसलमान भी मरे , लेकिन वे मुसलमानों के नाम पर लड़ रहे हैं। शर्म आनी चाहिए उन मुसलमानों को जो इस लड़ाई को अपनी मानते हैं। लेकिन यूपी के किसी छोटे से शहर के कॉलेज में पढ़ने वाला 20-25 साल का मुस्लिम लड़का जब देखेगा कि आजमगढ़ से हुई किसी भी गिरफ्तारी को सही ठहरा देने वाले लोग कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे से चल रही पूछताछ पर ही सवाल उठा देते हैं , तो क्या वह धर्म के नाम पर हो रही इस लड़ाई से प्रभावित नहीं होगा ? क्या गुजरात को गोधरा की ' प्रतिक्रिया ' बताने वाले लोग मुंबई को गुजरात की प्रतिक्रिया मानने से इनकार कर पाएंगे ? और अब क्या इस प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया यह हो कि कुछ और मालेगांव किए जाएं ? और फिर जवाबी प्रतिक्रिया का इंतज़ार किया जाए ? फिर हिंदू प्रतिक्रिया हो... फिर...लेकिन क्या इससे आतंकवादी हमले बंद हो जाएंगे ? क्या इससे जंग जीती जा सकेगी { विवेक आसरी }
नवभारत टाईम्स से साभार

Wednesday 19 November, 2008

महाराष्ट्र में 90 फीसदी जॉब स्थानीय लोगों के पास

महाराष्ट्र में ' बाहरी ' लोग स्थानीय लोगों से जॉब छीन रहे हैं, इस विषय पर राजनीति गरमाई हुई है, लेकिन आंकड़े बिल्कुल अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। खुद महाराष्ट्र सरकार के रेकॉर्ड बताते हैं कि करीब 1।6 लाख कुटीर, छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की इकाइयां हैं, जो मिलकर लगभग 10।86 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करती हैं। इनमें से 91 % नान सुपरवाइज़री पॉजिशन के और 97 % सुपरवाइज़री पॉजिशन वाले जॉब्स पर स्थानीय लोगों का कब्जा है।

राज्य में बड़े स्तर के उद्योगों की 3,435 युनिट्स हैं, जो 5।83 लाख लोगों को जॉब देती हैं। इनमें से 88 % स्टाफ बिना निगरानी वाली कैटिगरी में और 78.7 % स्टाफ निगरानी वाले पोस्ट पर स्थानीय लोग ही हैं। ये आंकड़े साफ बयां कर रहे हैं कि लोकल टैलंट को हाशिये पर रखने की बात गलत है। संकुचित और अवसरवादी राजनीति का आलम यह है कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे और एमएनएस से लेकर शिवसेना व कांग्रेस तक आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते भूमि पुत्र का कार्ड खेलने को मजबूर हुईं।

सोमवार को विलासराव देशमुख सरकार ने बार-बार पुरानी गवर्नमन्ट के रेज़लूशन को दोहराया कि सुपरवाइज़री पॉजिशन पर 50% और जूनियर लेवल के जॉब में 80% सीटों पर स्थानीय लोगों को तरजीह दी जाए। ऐसा छोटे से बड़े सभी स्तर की औद्योगिक इकाइयों के लिए होना चाहिए। यहां स्थानीय का मतलब उन लोगों से हैं, जो 15 सालों से महाराष्ट्र में रह रहे हैं। इन आंकड़ों की जानकारी टाइम्स ऑफ इंडिया को स्टेट इंडस्ट्री डिपार्टमंट से मिली। { संजीव शिवादेकर }
नवभारत टाईम्स से साभार

Sunday 2 November, 2008

साइना नेहवाल बनीं वर्ल्ड जूनियर चैंपियन


साइना नेहवाल बैडमिंटन की वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। उन्होंने रविवार को फाइनल मुकाबले में जापानी खिलाड़ी शैटो शायको को 21-9, 21-18 से हरा दिया।

दक्षिण कोरिया में 2006 में हुए पिछले वर्ल्ड कप मुकाबलों में साइना को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा था।

अगस्त में बीजिंग ओलिंपिक में साइना क्वार्टर फाइनल तक पहुंची थीं। उन्होंने सितंबर में चाइनीज ताइपेई ग्रैंड प्रिक्स भी जीता था। हाल में कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स में साइना गोल्ड पर कब्जा करने में कामयाब रही थीं।
नवभारत टाईम्स से साभार

Tuesday 28 October, 2008

मंगलमय हो दीपमालिका ...


दीपमालिका शुभ्र करों से करे आपका अभिनन्दन !
सत् पुरुषों का सदा समय नें किया नित्य ही चिर वन्दन !!

Friday 24 October, 2008

राज ठाकरे के खिलाफ हत्या का मुकदमा

मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कार्यकताओं द्वारा की गई कथित पिटाई की वजह से मारे गये छात्र पवन के पिता ने एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे और उनके करीब दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ बिहार के नालंदा जिला की एक स्थानीय अदालत में हत्या का मुकदमा दायर किया है।

पवन के पिता जगदीश प्रसाद ने नालंदा के बिहारशरीफ स्थित सीजेएम अभिमन्यु लाल श्रीवास्तव की अदालत में मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए उनके पुत्र पवन की हत्या को लेकर राज ठाकरे और दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाए जाने के लिए आईपीसी की धारा 302, 120 बी, 147 और 149 के तहत याचिका दायर की। प्रसाद द्वारा दायर की गई इस याचिका में रत्नेश प्रसाद सिंन्हा, सुधीर कुमार और शैलेंद्र कुमार को गवाह बनाया गया है।

रत्नेश प्रसाद सिन्हा और सुधीर कुमार पवन को उसके अभिभावक के तौर पर परीक्षा दिलाने मुंबई गए थे और वे पवन सहित अन्य छात्रों के साथ एमएनएस कार्यकताओं द्वारा मारपीट के चशमदीद गवाह हैं जबकि शैलेंद्र जो कि प्रसाद के एक परिचित हैं, जो पुणे में रहते हैं, को पोस्टमॉर्टम के बाद पवन का शव पुलिस ने सौंपा था। प्रसाद द्वारा दायर याचिका पर अदालत संभवत: शनिवार को सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे के भड़काऊ भाषण से उत्तेजित होकर उनके कार्यकताओं द्वारा पिछले रविवार को मुम्बई में रेलवे परीक्षा में शामिल होने गए बिहार सहित उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमले किए गए थे और इसको लेकर बिहार की कई अन्य अदालतों में भी हाल के दिनों में राज ठाकरे और उनके कार्यकताओं के खिलाफ केस दायर किए गए हैं।
नवभारत टाईम्स से साभार

Monday 20 October, 2008

महाराष्ट्र से बाहर रहने वाले मराठियों का क्या होगा ?

मैं भोपाल में रहने वाला एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण हूं। कई साल पहले मेरे पूर्वज महाराष्ट्र छोड़कर मध्य प्रदेश के इंदौर में आ बसे थे। वे इंदौर में रहे और करीब दस साल पहले महाराष्ट्र लौट गए। अब मैं भोपाल में एक कंपनी में काम करता हूं। जिस तरह का अभियान राज ठाकरे ने मुंबई में बाहरियों के खिलाफ छेड़ा है , उसे देखकर मुझे और मुझ जैसे करोड़ों मराठीभाषी परिवारों को डर लगता है , जो महाराष्ट्र के बाहर रहते हैं , जिनकी वजह से वृहन्महाराष्ट्र जिंदा है। मध्य प्रदेश के दो शहरों - इंदौर , भोपाल में ही मिलाकर मराठी परिवारों की आबादी दस लाख के आसपास होगी। मध्य प्रदेश के अलग - अलग जिलों में मराठी परिवारों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा ही है। ऐसे में क्या मैं और मुझ जैसे लाखों लोग खुद को सुरक्षित समझ सकते हैं। हम भी अपने वतन से मीलों दूर है। ऐसे में अगर हम पर सिर्फ इसलिए हमले शुरू हो गए कि हम महाराष्ट्र के हैं , और हमें वहीं जाकर गुजर - बसर करना होगी , तो क्या महाराष्ट्र हम लोगों की भूख को सहन कर पाएगा ? क्या वहां हमें रोजगार का कोई जरिया मिल पाएगा ? राज ठाकरे क्या उन लोगों की जिम्मेदारी नहीं लेंगे , जो महाराष्ट्र के बाहर रह रहे हैं ? हमारा माई - बाप कौन ? या हमें अपनी लड़ाई यहीं लड़कर जीतनी होगी ? यदि ऐसा हुआ तो कई राज्य इसी आग में झूलसकर रह जाएंगे। स्थानीय निवासियों को रोजगार में प्राथमिकता की मांग करना वाजिब लगता है , लेकिन दूसरों को मात्र इसलिए दुत्कार देना कि वे बाहर के हैं। मुझे ठीक नहीं लगता। सत्ता पाने के लिए शांतिपूर्ण और विकास की ओर ले जाने वाले विकल्पों का चयन होना चाहिए न कि नफरत पर आधारित राजनीति का। {रवि भजनी भोपाल से }
नवभारत टाईम्स से साभार

Thursday 14 August, 2008

वन्दे मातरम्...


' वन्दे मातरम् ' देश-प्रेम का गीत है , प्रत्‍येक देश के राष्‍ट्रगीत में स्‍वाभिमान होता है, वस्तुतः राष्‍ट्रध्‍वज और राष्‍ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढियां अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्‍द होते थे ‘वंदे मातरम्...!

'वन्दे मातरम्' गीत के पहले दो अनुच्छेद सन् 1876 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में लिखे थे। इन दोनों अनुच्छेदों में किसी भी देवी -देवता की स्तुति नहीं है , इनमें केवल मातृ-भूमि की वन्दना है । सन् 1882 ई० में जब उन्होंने 'आनन्द- मठ' नामक उपन्यास बॉग्ला भाषा में लिखा तब इस गीत को उसमें सम्मिलित कर लिया तथा उस समय उपन्यास की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने इस गीत का विस्तार किया परन्तु बाद के सभी अनुच्छेद बॉग्ला भाषा में जोड़े गए। इन बाद के अनुच्छेदों में देवि दुर्गा की स्तुति है ।

सन् 1896 ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है। तत्र दिनांक - 07 सितम्बर सन् 1905 ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक- 24 जनवरी सन् 1950 ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।

यह मधुर गीत विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत है (बी बी सी ने अपनी 70वीं वर्षगांठ पर एक सर्वे कराया था जिसके परिणाम की घोषणा 21 दिसम्बर सन् 2002 ई० में की गयी थी)। आईये हम गगनभेदी आवाज़ में इसे पुनः गाकर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दें :--

वन्दे मातरम् !

सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,

शस्यश्यामलाम् मातरम् !

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्

सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्

सुखदाम् वरदाम् मातरम् !

वन्दे मातरम् ...!

Monday 11 August, 2008

भारत ने स्वर्ण जीता

भारत के लिए ओलिंपिक से एक खुशखबरी है। एक सदी से जिस सपने को हम आंखों में संजोए बैठे थे आखिरकार वह पूरा हो गया है। यह सपना पूरा किया है भारत के निशानेबाज़ अभिनव बिंद्रा ने।

उन्होंने ओलंपिक खेलों की 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा का स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया। ओलिंपिक में यह पहली बार है जब किसी भारतीय ने अपने दम पर स्वर्ण पदक जीता है। ओलंपिक में हॉकी को छोड़कर भारत कभी किसी खेल में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था। लेकिन बिंद्रा ने नया इतिहास रचते हुए न केवल स्वर्ण जीता बल्कि भारत को ओलंपिक की पदक तालिका में भी स्थान दिला दिया।

25 वर्षीय बिंद्रा ने भारत को 28 वर्षों के अंतराल के बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने सन् 1980 ई० के मॉस्को ओलंपिक में हॉकी का स्वर्ण जीता था। अभिनव ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा का स्वर्ण 700.5 के स्कोर के साथ जीता। उनके स्वर्ण जीतते ही वहां रेंज में मौजूद सभी भारतीय समर्थक खुशी से झूम उठे।

ओलिंपिक में अभिनव बिंद्रा के इस शानदार प्रदर्शन पर उन्हें हार्दिक बधाई !

Tuesday 22 July, 2008

विश्वास मत जीतने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री


प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह सरकार द्वारा मंगलवार को लोकसभा से विश्वास मत हासिल कर लिए जाने के साथ ही देश के राजनीतिक और संसदीय इतिहास में एक नया रोमांचक अध्याय जुड़ गया। वे विश्वास मत जीतने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं। (दो दिनों की बहस के बाद यपीए सरकार लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने में सफल रही है। विश्वास मत के पक्ष में 275 और विपक्ष में 256 वोट पड़े हैं। )

देश के अब तक के संसदीय इतिहास में पांच प्रधानमंत्रियों ने अपनी सरकार पर छाए संकट के समय विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और पांचों ही उसमें असफल रहे। वे प्रधानमंत्री थे- मोरारजी देसाई, चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच.डी. देवेगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी।

इनमें से मोरार जी देसाई ने स्थिति को भांपकर सदन में विश्वास मत के प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उनके बाद प्रधानमंत्री बने चरण सिंह को लोकसभा का विश्वास हासिल करना था लेकिन वह सदन का सामना ही नहीं कर सके। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार कांग्रेस और बीजेपी द्वारा विरोध में मतदान के फलस्वरुप सदन में विश्वास मत के प्रस्ताव पर हार गई थी।

देवेगौड़ा ने कांग्रेस का समर्थन नहीं मिलने के कारण विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में सदन में मतदान से पहले ही अपनी 13 दिन की सरकार का इस्तीफा देने पर विवश हो गए थे जबकि 1998 में उनकी सरकार विश्वास मत का प्रस्ताव एक वोट से हार गई थी।

नवभारतटाइम्स से साभार

Friday 18 July, 2008

तस्मै श्रीगुरवे नमः ....


अज्ञान-तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन-शलाकया ।

चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

भारतवर्ष में गुरु - शिष्य की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से रही है। जब शिष्य को सदगुरु प्राप्त हो जाते हैं तो उसकी दिशा एवं दशा दोनों बदल जाती है। गुरु की कृपा से शिष्य का दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है। धर्म शास्त्रों में गुरु की महत्ता बतलाते हुए कहा गया है कि गुरु से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है। यहाँ तक कहा गया है कि भगवान के रुष्ट होने पर गुरु बचा लेते हैं परन्तु गुरु के रुष्ट होने पर कोई भी नहीं बचा सकता अतएव समस्त प्रयत्नों से श्री गुरु की शरण में जाना चाहिए।

हरौ रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन ।

तस्मात् सर्व प्रयत्नेन श्रीगुरु शरणं व्रजेत।।

कहते है कि श्री भगवान स्वयं वेदव्यास के रूप में जन-सामान्य को ज्ञान देने के लिये देह धारण किये थे अतः व्यास-जयन्ती पर गुरु-पूर्णिमा मनाया जाता है। लोग अपनी गुरु-परंपरा को स्मरण , पूजन आदि करते हैं। आज मैं भी अपने समस्त गुरु जनों को सादर नमन करते हुए एक पुरानी प्रार्थना दुहराती हूँ :-

बादल आवश्यकतानुसार जल बरसें जिससे यह पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण हो , मेरा देश सभी प्रकार के उद्वेग से रहित हो तथा साधक-समुदाय निडर हो कर अनुसन्धान करें ।


काले वर्षतु पर्जन्यः पृथ्वी शस्यशालिनी ।

राष्ट्रोSयं क्षोभ रहितो निर्भयः सन्तु साधकः ।।

Sunday 29 June, 2008

फलाहारी व्यंजन ही क्यों .....?

जब मैं छोटी सी थी तब कभी-कभी सोंचा करती थी की लोग ब्रत-उपवास के दिन फलाहार क्यों खाते हैं? क्या खाने में मज़ेदार स्वाद मिलता हैं इसलिए? या ज्यादा पौष्टिक होता हैं इसलिए? कुछ भी बिना खाए क्या उपवास नहीं रहा जा सकता हैं? मेरी दादी जी कहती थी- "नहीं, यह शुद्ध होता हैं इसलिए" मैं सोचती थी शुद्ध तो सभी होता हैं, आखिर घर में ही तो बनता है । पर छोटी थी अतः शांत रहती थी। लेकिन जिज्ञासा नहीं शांत हुई ! बहुतों से पूंछा किसी ने बात को हँसी में उड़ा दिया तो किसी ने मुझ पर ही हंसी उड़ा दिया ! प्रश्न का उत्तर नहीं मिला । एक दिन यही सवाल झिझकते -झिझकते सर जी से पूंछ बैठी । ( अभी मई माह में जब सर जी की अस्वस्थता का समाचार पाकर उन्हें देखनें जब हम इलाहाबाद गए थे ) तब सर जी ने ( श्रद्धेय श्री दिवाकर प्रताप सिंह जी ने ) बताया की ऐसा शास्त्र का वचन है कि गृहस्थ को निराहार नहीं रहना चाहिए । ब्रह्मर्षि गौतम का कथन है कि :-
आदित्ये Sहनि संक्रान्त्याम सितैकादशिशु च ।
पारणामु पवासन्च न कुर्यात पुत्रवान गृही ॥
अर्थात शास्त्रज्ञा के अनुसार गृहस्थियों के लिये निराहार जीवन का निषेध है तो अब व्रतादि का पुण्य लाभ पानें हेतु करें क्या ? इस पर महर्षि वेदव्यास जी ने वायु-पुराण में लिखा है :-
उपवास निषेधे तु भक्ष्यं किन्चित्कल्पयेत ।
न दुश्यत्युपवासेन उपवास फलं लभेत ॥
अर्थात व्रताभिलाशी गृहस्थ शास्त्रोक्त-आहार ( जल या दुग्ध पी ले तथा फल ) खा ले तो शास्त्राज्ञा निषेध का दोष भी नहीं लगता तथा व्रत -उपवास का पूरा फल भी उसे प्राप्त हो जाता है । बस इसीलिए व्रत- उपवास में लोग फलाहारी व्यंजन खाते हैं ।


Saturday 7 June, 2008

सिंहावलोकन .......





महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने मई माह में अग्रिम सीमावर्ती अपनी पंच दिवसीय यात्रा के समय 'बारामुला' में जवानों को सम्बोधित करते समय कहा कि सीमा पर फायरिंग करने वालों को मुँहतोड़ ज़वाब दिया जायेगा । इस यात्रा के दौरान ए के -47 रायफल हाथ में उठायी हुयी राष्ट्रपति महोदया के चित्र पर वहाँ की स्थानीय पार्टी( नेशनल कांफ्रेस) के नेता उमर अब्दुल्लाह् ने अपने ब्लॉग पर नाराज़गी जताते हुए लिखा कि मुस्कराते हुए हथियार नहीं उठाया जा सकता ! वस्तुतः उमर अब्दुल्लाह् जैसे नेता ने कभी भी भारतीय संस्कृति को समझने की कोशिश ही नहीं की अन्यथा उन्हें यह पता होता कि "...चित्ते कृपा समरनिष्ठुरता च दृष्टा " का वर्णन माँ दुर्गा हेतु 'सप्तशती' में लिखा है और श्रीराम-रावण युद्ध में भी रघुनाथ जी के मुस्कराने का वर्णन करते हुए गो० तुलसीदास ने लिखा है - प्रभु मुस्काहिं देखि अभिमाना। धनुष उठाइ बान सन्धाना ।।

Thursday 5 June, 2008


पर्यावरण दिवस पर..........


एक कहावत है कि कभी भी बात इतनी नहीं बिगड़ती कि उसे कभी संभाला न जा सके। 'पर्यावरण ' पर भी यही बात लागू होती है । आइये देखें, इसे रोकने के लिए हम-आप क्या कर सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण के बारे में पढ़े और साथियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें । इससे आप पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका को समझ सकेंगे । 'इनवॉयरनमेंट क्लब' का गठन इस दिशा में अच्छी पहल साबित हो सकती है। हम जब भी बिजली का इस्तेमाल करते हैं, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ती है। बिजली बचाकर आप न केवल ऊर्जा, बल्कि पृथ्वी को भी बचा सकते हो। ईधन चालित व्यक्तिगत वाहनों की जगह कार पूल/बस में सफर को वरीयता देनी चाहिए। छोटी दूरी के लिए पैदल चलने या साइकिल का इस्तेमाल करें । बिजली की जगह सोलर एनर्जी के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस प्रभाव को सीमित किया जा सकता है। रोशनी, खाना बनाने और पानी गर्म करने के लिए सोलर एनर्जी प्रोडॅक्ट्स आसानी से उपलब्ध है। अधिक से अधिक मात्रा में वृक्ष लगायें और इनकी देखभाल करें । यही वह भरोसेमंद सिपाही हैं; जो पृथ्वी को बचाने की इस लड़ाई में सच्चे साथी साबित होंगे।

Saturday 31 May, 2008

खेद है कि ......

खेद है कि कुछ अपरिहार्य कारणवश मैं लिख नहीं पा रही हूँ और आप सब को मेरे ब्लॉग्स पर कुछ नया पढ़ने को नहीं मिल रहा है ! शीघ्र ही कुछ लिखने का प्रयास करूँगी अब !

हर्षवर्धन भैय्या जी ! मैं आपकी आभारी हूँ कि आप मेरे ब्लॉग पर आये और मेरा उत्साहवर्धन किया, आकाँक्षा है कि आप सब की उम्मीदों पर मैं खरी उतरूँ और हाँ, "मीरा" ब्लॉग नहीं लिखती है !

Comely Dame जी आपका भी आभार !

Wednesday 30 April, 2008

.....जूझने के लिये तैयार हैं आप ?
सामान्य तौर पर 38 डिग्री से अधिक तापमान होने पर शरीर को परेशानी होने लगती है और इस समय तापमान 42 डिग्री से अधिक है । कल राजधानी में 42.6 डिग्री का पारा था जो कि शरीर के लिये खतरनाक है । तेज धूप के कारण सीधे दिमाग पर असर होता है जिससे बेचैनी का अहसास होता है और दिमाग किसी भी कार्य को लेकर केन्द्रित नहीं हो पाता है ।

सूर्य की किरणों में उपस्थित अल्ट्रा वायलेट किरणें शरीर के लिये नुकसानदायक " रिएक्टिव ऑक्सीज़न स्पेसीज़ " नामक कणों का उत्पादन बढ़ा देती हैं ( जो कि स्किन कैंसर का एक प्रमुख कारण है ) परन्तु तरबूज ( कहीं-कहीं इसे 'हिरमाना' भी कहा जाता है) में पाये जाने वाला ' लाइकोपिन ' नामक तत्व उन्हें बेअसर कर देता है । वस्तुतः लाइकोपिन एक ' एंटी ऑक्सीडेंट ' है जो कि हमारे शरीर के अन्दर मौज़ूद ' फ्री रैडिकल्स ' को निष्क्रिय बनाने का कार्य करता है । तरबूज में विटामिन 'ए' और 'सी' भी भरपूर मात्रा में होते हैं । शायद इसीलिए प्रकृति ने इसे गर्मी के मौसम में हमें प्रदान किया है ।

गर्मी में लगातार पसीना निकलता रहता है , अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है ( गर्मी में , जाड़े की तुलना में शरीर को काम करने के लिए डेढ़ गुना ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है ) लोग इतना थक सकते है कि साँस लेने में भी दम लगाना पड़ता है , अब ऐसे में यदि आप भोजन में पोषण तत्वों की कमी कर बैठे तो आप को लगेगा कि आप दमा ( अस्थमा ) के मरीज़ तो नहीं ? पोटेशियम और सोडियम की कमी से धूप में चक्कर खा कर गिर भी सकते हैं । तीखी गर्मी में शरीर का पानी सूखने पर उल्टी-दस्त शुरु हो सकता है अतएव खाली पेट धूप में न निकलें , भोजन कम तथा पानी अधिक पीयें । नींबू-पानी-नमक एवं चीनी के घोल का सेवन करें । धूप और गर्म हवाओं का सामना करना अगर आपकी मज़बूरी है तो शरीर को गर्मी से जूझने के लिए तैयार कर लीजिये ! वैसे मौसम विभाग की मानें तो " लू " के थपेड़े अभी शुरु नहीं हुए हैं फिरभी लोग बदहाल हैं । अब अप्रैल में गर्मी का यह हाल है तो मई-जून में क्या होगा ?

Monday 31 March, 2008

प्रत्युत्तर

सर्वप्रथम सुमित जी, अजित वडनेरकर जी, संजीत त्रिपाठी जी, अनुराधा श्रीवास्तव जी, आशीष जी , उन्मुक्त जी, हर्षवर्धन जी, अनीताकुमार जी आप सभी को बहुत बहुत आभार ! आपने मेरे लेख को पढ़ा एवं अपने विचार भी रखे ... आशा है कि आगे भी इसी दिलचस्पी और सक्रियता के साथ उपस्थित रहेंगे।
संजीत भैय्या जी , "आदरास्पद्" का अर्थ है => आदर + आस्पद् ( परिपूर्ण , युक्त ) अर्थात् आदरणीया !
Note : - आदरास्पद् या मानास्पद् जैसे शब्दों का प्रयोग केवल स्त्रीलिङ्ग के शब्दों में ही होता है ।

मेरे कम्प्यूटर में 'वायरस' आ गया है अब अप्रैल में बनेगा तभी आप सब से पुनः रू-ब-रू हों पाऊँगी। मैं यह पोस्टिंग अपनी सहेली 'मीरा राठौड़' के पीसी से कर रही हूँ अतदर्थ उसे भी आभार !
आप सभी को नूतन सम्वत्सर की शुभकामनाओं सहित ...

Friday 7 March, 2008

प्रतिप्रश्न



आज जो कविता आप सब के सामने है इसके रचनाकार है स्व-नाम-धन्य श्रीयुत् दिवाकर प्रताप सिंह। (आप हमारे सीनियर, संमान्य मित्र, गाइड तथा गुरु भी हैं ) प्रस्तुत कविता उन्होंने अपनी धर्मपत्नी के लिये विवाह से पूर्व लिखा था । कविता का जितना अंश मुझे याद है, उसका लोकार्पण आज मैं कर रही हूँ । आदरास्पद् भाभीजी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इसे मेरी ओर से भेंट समझें ।

प्रतिप्रश्न

क्यों अधर तुम्हारे कम्पित हैं ?
वह हँसी पुरानी कहाँ गई ?
मज़नू पागल-सा क्यों तड़पा ,
लैला बन कर सोंचा है कभी ?

आँसू की गरमीं गई कहाँ ?
क्यों बर्फ-सी ठंडी साँस हुई ?
अपनी चाहत क्यों भुला गई ?
क्यों भीड़ में हो तुम एकाकी ?

अनुशासन सारा गया कहाँ ?
क्यों अपनी सुध-बुध भुला गई ?
तकिये में मुँह क्यों छुपा लिया ?
किसकी यादें फिर रुला गईं ?

राधा-सी पैंजनी झंकृत कर ,
मुरली तुम क्यों बजवाती हो ?
क्यों पत्र लिखा वैदर्भी* -सा ,
फिर पाँचञ्जन्य बजवाती हो ?

वैदर्भी = विदर्भ की राजकुमारी रुक्मणी जी।

Tuesday 4 March, 2008

प्रवेशिका

कहते हैं कि खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है, तो लोगों के ब्लॉग को देख-पढ़ कर हमनें भी 'ब्लॉग' बनाने की सोंची - अतएव ब्लॉग का प्रथम उद्देश्य हुआ "स्वान्तः सुखाय" ! .......... फिर एक प्रश्न मन में कौंधा कि ब्लॉग का नाम क्या हो ?

मन में ख्याल आया कि बड़ी भाभी कहती हैं कि तुम जब भी बोलती हो , तो एकदम से आग उगलती हो, सो हमें ब्लॉग का नाम SPEAK-UP अर्थात् खरी-खरी सुनाना ( स्पष्ट -बोलना) ठीक लगा। 'गूगल' महराज को यह नाम पसन्द ही नहीं आया और हम नाम बदलने को नहीं तैयार ! फिर क्या , कुछ देर के बाद हमारे 'मूड' को भाँप कर गूगल महराज ने सन्धि कर ली और हम भी आ गये ब्लागर्स-जगत में ! कितना अच्छा लगता है न कि यहाँ हमीं लेखक, हमीं सम्पादक तथा हमीं प्रकाशक भी हैं ।

अब आप लोगों से अपने मन की बातें शेयर करूँगी और आप लोगों के स्नेह्-सौहार्द के बल पर ब्लॉग लिखती रहूँगी । तो फिर मिलते हैं ... बाय..........