Sunday, 29 June 2008

फलाहारी व्यंजन ही क्यों .....?

जब मैं छोटी सी थी तब कभी-कभी सोंचा करती थी की लोग ब्रत-उपवास के दिन फलाहार क्यों खाते हैं? क्या खाने में मज़ेदार स्वाद मिलता हैं इसलिए? या ज्यादा पौष्टिक होता हैं इसलिए? कुछ भी बिना खाए क्या उपवास नहीं रहा जा सकता हैं? मेरी दादी जी कहती थी- "नहीं, यह शुद्ध होता हैं इसलिए" मैं सोचती थी शुद्ध तो सभी होता हैं, आखिर घर में ही तो बनता है । पर छोटी थी अतः शांत रहती थी। लेकिन जिज्ञासा नहीं शांत हुई ! बहुतों से पूंछा किसी ने बात को हँसी में उड़ा दिया तो किसी ने मुझ पर ही हंसी उड़ा दिया ! प्रश्न का उत्तर नहीं मिला । एक दिन यही सवाल झिझकते -झिझकते सर जी से पूंछ बैठी । ( अभी मई माह में जब सर जी की अस्वस्थता का समाचार पाकर उन्हें देखनें जब हम इलाहाबाद गए थे ) तब सर जी ने ( श्रद्धेय श्री दिवाकर प्रताप सिंह जी ने ) बताया की ऐसा शास्त्र का वचन है कि गृहस्थ को निराहार नहीं रहना चाहिए । ब्रह्मर्षि गौतम का कथन है कि :-
आदित्ये Sहनि संक्रान्त्याम सितैकादशिशु च ।
पारणामु पवासन्च न कुर्यात पुत्रवान गृही ॥
अर्थात शास्त्रज्ञा के अनुसार गृहस्थियों के लिये निराहार जीवन का निषेध है तो अब व्रतादि का पुण्य लाभ पानें हेतु करें क्या ? इस पर महर्षि वेदव्यास जी ने वायु-पुराण में लिखा है :-
उपवास निषेधे तु भक्ष्यं किन्चित्कल्पयेत ।
न दुश्यत्युपवासेन उपवास फलं लभेत ॥
अर्थात व्रताभिलाशी गृहस्थ शास्त्रोक्त-आहार ( जल या दुग्ध पी ले तथा फल ) खा ले तो शास्त्राज्ञा निषेध का दोष भी नहीं लगता तथा व्रत -उपवास का पूरा फल भी उसे प्राप्त हो जाता है । बस इसीलिए व्रत- उपवास में लोग फलाहारी व्यंजन खाते हैं ।


4 comments:

Sumit said...

बहुत ही बढ़िया जानकारी दी आपने ...ये तो पता ही नही था।
शुक्रिया जानकारी देने के लिए!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

सच में हम तो अनभिज्ञ थे इस जानकारी से...
बहुत ही बढिया जानकारी लाये आप..

ह्म्म्म..
शुभकामनायें

Anita kumar said...

अरे वाह ये तो हमें भी नही पता था।धन्यवाद

तपन शर्मा Tapan Sharma said...

ह्म्म्म्म.. ये तो पता ही नहीं था..
धन्यवाद