
Tuesday, 28 October 2008
Friday, 24 October 2008
राज ठाकरे के खिलाफ हत्या का मुकदमा
मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कार्यकताओं द्वारा की गई कथित पिटाई की वजह से मारे गये छात्र पवन के पिता ने एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे और उनके करीब दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ बिहार के नालंदा जिला की एक स्थानीय अदालत में हत्या का मुकदमा दायर किया है।
पवन के पिता जगदीश प्रसाद ने नालंदा के बिहारशरीफ स्थित सीजेएम अभिमन्यु लाल श्रीवास्तव की अदालत में मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए उनके पुत्र पवन की हत्या को लेकर राज ठाकरे और दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाए जाने के लिए आईपीसी की धारा 302, 120 बी, 147 और 149 के तहत याचिका दायर की। प्रसाद द्वारा दायर की गई इस याचिका में रत्नेश प्रसाद सिंन्हा, सुधीर कुमार और शैलेंद्र कुमार को गवाह बनाया गया है।
रत्नेश प्रसाद सिन्हा और सुधीर कुमार पवन को उसके अभिभावक के तौर पर परीक्षा दिलाने मुंबई गए थे और वे पवन सहित अन्य छात्रों के साथ एमएनएस कार्यकताओं द्वारा मारपीट के चशमदीद गवाह हैं जबकि शैलेंद्र जो कि प्रसाद के एक परिचित हैं, जो पुणे में रहते हैं, को पोस्टमॉर्टम के बाद पवन का शव पुलिस ने सौंपा था। प्रसाद द्वारा दायर याचिका पर अदालत संभवत: शनिवार को सुनवाई करेगी।
गौरतलब है कि एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे के भड़काऊ भाषण से उत्तेजित होकर उनके कार्यकताओं द्वारा पिछले रविवार को मुम्बई में रेलवे परीक्षा में शामिल होने गए बिहार सहित उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमले किए गए थे और इसको लेकर बिहार की कई अन्य अदालतों में भी हाल के दिनों में राज ठाकरे और उनके कार्यकताओं के खिलाफ केस दायर किए गए हैं।
नवभारत टाईम्स से साभार
Monday, 20 October 2008
महाराष्ट्र से बाहर रहने वाले मराठियों का क्या होगा ?
मैं भोपाल में रहने वाला एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण हूं। कई साल पहले मेरे पूर्वज महाराष्ट्र छोड़कर मध्य प्रदेश के इंदौर में आ बसे थे। वे इंदौर में रहे और करीब दस साल पहले महाराष्ट्र लौट गए। अब मैं भोपाल में एक कंपनी में काम करता हूं। जिस तरह का अभियान राज ठाकरे ने मुंबई में बाहरियों के खिलाफ छेड़ा है , उसे देखकर मुझे और मुझ जैसे करोड़ों मराठीभाषी परिवारों को डर लगता है , जो महाराष्ट्र के बाहर रहते हैं , जिनकी वजह से वृहन्महाराष्ट्र जिंदा है। मध्य प्रदेश के दो शहरों - इंदौर , भोपाल में ही मिलाकर मराठी परिवारों की आबादी दस लाख के आसपास होगी। मध्य प्रदेश के अलग - अलग जिलों में मराठी परिवारों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा ही है। ऐसे में क्या मैं और मुझ जैसे लाखों लोग खुद को सुरक्षित समझ सकते हैं। हम भी अपने वतन से मीलों दूर है। ऐसे में अगर हम पर सिर्फ इसलिए हमले शुरू हो गए कि हम महाराष्ट्र के हैं , और हमें वहीं जाकर गुजर - बसर करना होगी , तो क्या महाराष्ट्र हम लोगों की भूख को सहन कर पाएगा ? क्या वहां हमें रोजगार का कोई जरिया मिल पाएगा ? राज ठाकरे क्या उन लोगों की जिम्मेदारी नहीं लेंगे , जो महाराष्ट्र के बाहर रह रहे हैं ? हमारा माई - बाप कौन ? या हमें अपनी लड़ाई यहीं लड़कर जीतनी होगी ? यदि ऐसा हुआ तो कई राज्य इसी आग में झूलसकर रह जाएंगे। स्थानीय निवासियों को रोजगार में प्राथमिकता की मांग करना वाजिब लगता है , लेकिन दूसरों को मात्र इसलिए दुत्कार देना कि वे बाहर के हैं। मुझे ठीक नहीं लगता। सत्ता पाने के लिए शांतिपूर्ण और विकास की ओर ले जाने वाले विकल्पों का चयन होना चाहिए न कि नफरत पर आधारित राजनीति का। {रवि भजनी भोपाल से }
नवभारत टाईम्स से साभार
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