Tuesday, 9 December 2008

दिवाकर की हैट-ट्रिक से भारत जीता


कैप्टन दिवाकर की हैट-ट्रिक की बदौलत भारत ने मंगलवार को ब्यूनस आयर्स में खेले गए अंडर 21 के शुरुआती मुकाबले में वर्ल्ड चैंपिअन अर्जेन्टीना पर 3-2 से जीत दर्ज की।

भारत को अर्जेन्टीना के तूफानी प्रयासों और शानदार डिफेंस से हालांकि शुरू में परेशानी हुई, लेकिन खिलाड़ी अपनी तेजी से बराबरी करने में सफल रहे। दिवाकर ने नौवें मिनट में पहला गोल दागा और फिर 10 मिनट बाद पेनल्टी कॉर्नर से इसे दोगुना कर बढ़त को मजबूत किया। भारत ब्रेक से पहले 2-0 की बढ़त बना चुका था।

दूसरे हाफ में भारत ने 55वें मिनट में इस बढ़त को 3-0 कर दिया, जबकि अर्जेन्टीना ने 64वें और 67वें मिनट में गोल कर इस अंतर को कम किया। इससे पहले मिडफील्डर विकास शर्मा ने भारतीय फॉरवर्ड जय करण के लिए सर्कल के भीतर गोल करने का एक बेहतर मौका बनाया, लेकिन नाहुल सालिस ने उनकी राह में बाधा पहुंचाई। जिससे दिवाकर ने पेनल्टी कार्नर पर नौवें मिनट में ड्रैगफ्लिक से गोल किया।

नवभारत टाईम्स से साभार

Saturday, 29 November 2008

जीत ली आतंक पर जंग.....

नरीमन हाउस को आतंकवादियों से खाली करवा लिया गया है॥यह घोषणा सुनते ही वहां मौजूद लोगों ने जय-जयकार शुरू कर दी। मुझे यकीन है टीवी के आगे बंधे बैठे पूरे मुल्क के बहुत सारे लोग उस जय-जयकार में शामिल थे। मैं नहीं था। चाहते हुए भी नहीं...बल्कि मुझे तो शर्म आ रही थी। मरीन हाउस के ' गौरवपूर्ण ' दृश्यों को दिखाते टीवी एंकर बोल रहे थे – यह गर्व की बात है , हमारे बहादुर जवानों ने आतंक पर एक जंग जीत ली है , नरीमन हाउस पर कब्जा हो गया है। नीचे न्यूज फ्लैश चल रहा था – नरीमन हाउस में आतंकियों का सफाया...दो आतंकी मारे गए...पांच बंधकों के भी शव मिले... एनएसजी कमांडो शहीद।
किस बात पर गर्व करें ? पांच मासूम जानें और बेशकीमती सैनिक खो देने के बाद दो आतंकवादियों के सफाए पर ? 10-20-50 लोग मनचाहे हथियार और गोलाबारूद लेकर आपके देश में घुसते हैं। जहां चाहे बम फोड़ देते हैं। खुलेआम सड़कों पर फायरिंग करते हैं। आपकी बेहद आलीशान और सुरक्षित इमारतों पर कब्जा कर लेते हैं। आपकी पुलिस के सबसे बड़े ओहदों पर बैठे अफसरों को मार गिराते हैं। सैकड़ों लोगों को कत्ल कर देते हैं। आपके मेहमानों को बंधक बना लेते हैं। आपकी खेल प्रतियोगिताओं को बंद करवा देते हैं। आपके प्रधानमंत्री और बड़े-बड़े नेताओं की घिग्घी बांध देते हैं। तीन दिन तक आपके सबसे कुशल सैकड़ों सैनिकों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलते हैं और इसलिए मारे जाते हैं क्योंकि वे सोचकर आए थे...इसे आप जीत कहेंगे ? क्या यह गर्व करने लायक बात है ?
आपको क्या लगता है , देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला करनेवाले आतंकवादियों को मारकर आतंक के खिलाफ यह जंग हमने जीत ली है ? हम इस जंग में बुरी तरह हार गए हैं। उन लोगों ने जो चाहा किया , जिसे चाहा मारा , जिस हद तक खींच सके खींचा। आपको क्या लगता है , बंधकों को सेना ने बचाया है ? जब वे होटलों में घुसे तो हजारों लोग उनके निशाने पर थे। वे चाहते तो सबको मार सकते थे। उनके पास इतना गोला-बारूद था कि ताज और ओबरॉय होटेलों का नाम-ओ-निशान तक नहीं बचता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इंतजार किया कि पूरी दुनिया का मीडिया उनके आगे घुटने टेक कर और जमीन पर लेटकर यह दिखाने को मजबूर हो जाए कि वे क्या कर सकते हैं। उनकी चलाई एक-एक गोली पर रिपोर्टर्स चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे – देखिए एक गोली और चली। इसे आप जीत कहेंगे ?
यह देश पर सबसे बड़ा आतंकी हमला था...1993 के बम ब्लास्ट के बाद भी यही कहा गया था। जब वे हमारा जहाज कंधार उड़ा ले गए थे , तब भी यही कहा था। संसद पर हमला हुआ तब भी यह शब्द थे। अहमदाबाद को उड़ाया था , तब भी सब यही सोच रहे थे। दिल्ली , जयपुर , मुंबई लोकल...हर बार उनका हमला बड़ा होता गया...क्या लगता है अब इससे बड़ा हमला नहीं हो सकता ? बड़े आराम से होगा और हम तब भी यही कह रहे होंगे। क्या इसका इलाज अफजल की फांसी में है ? क्या इसका इलाज पाकिस्तान पर हमले में है ? क्या इसका इलाज पोटा में है ? आतंकियों ने अपने ई-मेल में लिखा था कि वे महाराष्ट्र एटीएस के मुसलमानों पर जुल्म का बदला ले रहे हैं। वे गुजरात का बदला ले रहे हैं। वे आजमगढ़ का बदला ले रहे हैं।
वे धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं। भले ही उनकी गोलियों से मुसलमान भी मरे , लेकिन वे मुसलमानों के नाम पर लड़ रहे हैं। शर्म आनी चाहिए उन मुसलमानों को जो इस लड़ाई को अपनी मानते हैं। लेकिन यूपी के किसी छोटे से शहर के कॉलेज में पढ़ने वाला 20-25 साल का मुस्लिम लड़का जब देखेगा कि आजमगढ़ से हुई किसी भी गिरफ्तारी को सही ठहरा देने वाले लोग कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडे से चल रही पूछताछ पर ही सवाल उठा देते हैं , तो क्या वह धर्म के नाम पर हो रही इस लड़ाई से प्रभावित नहीं होगा ? क्या गुजरात को गोधरा की ' प्रतिक्रिया ' बताने वाले लोग मुंबई को गुजरात की प्रतिक्रिया मानने से इनकार कर पाएंगे ? और अब क्या इस प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया यह हो कि कुछ और मालेगांव किए जाएं ? और फिर जवाबी प्रतिक्रिया का इंतज़ार किया जाए ? फिर हिंदू प्रतिक्रिया हो... फिर...लेकिन क्या इससे आतंकवादी हमले बंद हो जाएंगे ? क्या इससे जंग जीती जा सकेगी { विवेक आसरी }
नवभारत टाईम्स से साभार

Wednesday, 19 November 2008

महाराष्ट्र में 90 फीसदी जॉब स्थानीय लोगों के पास

महाराष्ट्र में ' बाहरी ' लोग स्थानीय लोगों से जॉब छीन रहे हैं, इस विषय पर राजनीति गरमाई हुई है, लेकिन आंकड़े बिल्कुल अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। खुद महाराष्ट्र सरकार के रेकॉर्ड बताते हैं कि करीब 1।6 लाख कुटीर, छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की इकाइयां हैं, जो मिलकर लगभग 10।86 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करती हैं। इनमें से 91 % नान सुपरवाइज़री पॉजिशन के और 97 % सुपरवाइज़री पॉजिशन वाले जॉब्स पर स्थानीय लोगों का कब्जा है।

राज्य में बड़े स्तर के उद्योगों की 3,435 युनिट्स हैं, जो 5।83 लाख लोगों को जॉब देती हैं। इनमें से 88 % स्टाफ बिना निगरानी वाली कैटिगरी में और 78.7 % स्टाफ निगरानी वाले पोस्ट पर स्थानीय लोग ही हैं। ये आंकड़े साफ बयां कर रहे हैं कि लोकल टैलंट को हाशिये पर रखने की बात गलत है। संकुचित और अवसरवादी राजनीति का आलम यह है कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे और एमएनएस से लेकर शिवसेना व कांग्रेस तक आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते भूमि पुत्र का कार्ड खेलने को मजबूर हुईं।

सोमवार को विलासराव देशमुख सरकार ने बार-बार पुरानी गवर्नमन्ट के रेज़लूशन को दोहराया कि सुपरवाइज़री पॉजिशन पर 50% और जूनियर लेवल के जॉब में 80% सीटों पर स्थानीय लोगों को तरजीह दी जाए। ऐसा छोटे से बड़े सभी स्तर की औद्योगिक इकाइयों के लिए होना चाहिए। यहां स्थानीय का मतलब उन लोगों से हैं, जो 15 सालों से महाराष्ट्र में रह रहे हैं। इन आंकड़ों की जानकारी टाइम्स ऑफ इंडिया को स्टेट इंडस्ट्री डिपार्टमंट से मिली। { संजीव शिवादेकर }
नवभारत टाईम्स से साभार

Sunday, 2 November 2008

साइना नेहवाल बनीं वर्ल्ड जूनियर चैंपियन


साइना नेहवाल बैडमिंटन की वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। उन्होंने रविवार को फाइनल मुकाबले में जापानी खिलाड़ी शैटो शायको को 21-9, 21-18 से हरा दिया।

दक्षिण कोरिया में 2006 में हुए पिछले वर्ल्ड कप मुकाबलों में साइना को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा था।

अगस्त में बीजिंग ओलिंपिक में साइना क्वार्टर फाइनल तक पहुंची थीं। उन्होंने सितंबर में चाइनीज ताइपेई ग्रैंड प्रिक्स भी जीता था। हाल में कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स में साइना गोल्ड पर कब्जा करने में कामयाब रही थीं।
नवभारत टाईम्स से साभार

Tuesday, 28 October 2008

मंगलमय हो दीपमालिका ...


दीपमालिका शुभ्र करों से करे आपका अभिनन्दन !
सत् पुरुषों का सदा समय नें किया नित्य ही चिर वन्दन !!

Friday, 24 October 2008

राज ठाकरे के खिलाफ हत्या का मुकदमा

मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कार्यकताओं द्वारा की गई कथित पिटाई की वजह से मारे गये छात्र पवन के पिता ने एमएनएस अध्यक्ष राज ठाकरे और उनके करीब दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ बिहार के नालंदा जिला की एक स्थानीय अदालत में हत्या का मुकदमा दायर किया है।

पवन के पिता जगदीश प्रसाद ने नालंदा के बिहारशरीफ स्थित सीजेएम अभिमन्यु लाल श्रीवास्तव की अदालत में मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए उनके पुत्र पवन की हत्या को लेकर राज ठाकरे और दो सौ अज्ञात कार्यकताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाए जाने के लिए आईपीसी की धारा 302, 120 बी, 147 और 149 के तहत याचिका दायर की। प्रसाद द्वारा दायर की गई इस याचिका में रत्नेश प्रसाद सिंन्हा, सुधीर कुमार और शैलेंद्र कुमार को गवाह बनाया गया है।

रत्नेश प्रसाद सिन्हा और सुधीर कुमार पवन को उसके अभिभावक के तौर पर परीक्षा दिलाने मुंबई गए थे और वे पवन सहित अन्य छात्रों के साथ एमएनएस कार्यकताओं द्वारा मारपीट के चशमदीद गवाह हैं जबकि शैलेंद्र जो कि प्रसाद के एक परिचित हैं, जो पुणे में रहते हैं, को पोस्टमॉर्टम के बाद पवन का शव पुलिस ने सौंपा था। प्रसाद द्वारा दायर याचिका पर अदालत संभवत: शनिवार को सुनवाई करेगी।

गौरतलब है कि एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे के भड़काऊ भाषण से उत्तेजित होकर उनके कार्यकताओं द्वारा पिछले रविवार को मुम्बई में रेलवे परीक्षा में शामिल होने गए बिहार सहित उत्तर भारतीय उम्मीदवारों पर हमले किए गए थे और इसको लेकर बिहार की कई अन्य अदालतों में भी हाल के दिनों में राज ठाकरे और उनके कार्यकताओं के खिलाफ केस दायर किए गए हैं।
नवभारत टाईम्स से साभार

Monday, 20 October 2008

महाराष्ट्र से बाहर रहने वाले मराठियों का क्या होगा ?

मैं भोपाल में रहने वाला एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण हूं। कई साल पहले मेरे पूर्वज महाराष्ट्र छोड़कर मध्य प्रदेश के इंदौर में आ बसे थे। वे इंदौर में रहे और करीब दस साल पहले महाराष्ट्र लौट गए। अब मैं भोपाल में एक कंपनी में काम करता हूं। जिस तरह का अभियान राज ठाकरे ने मुंबई में बाहरियों के खिलाफ छेड़ा है , उसे देखकर मुझे और मुझ जैसे करोड़ों मराठीभाषी परिवारों को डर लगता है , जो महाराष्ट्र के बाहर रहते हैं , जिनकी वजह से वृहन्महाराष्ट्र जिंदा है। मध्य प्रदेश के दो शहरों - इंदौर , भोपाल में ही मिलाकर मराठी परिवारों की आबादी दस लाख के आसपास होगी। मध्य प्रदेश के अलग - अलग जिलों में मराठी परिवारों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा ही है। ऐसे में क्या मैं और मुझ जैसे लाखों लोग खुद को सुरक्षित समझ सकते हैं। हम भी अपने वतन से मीलों दूर है। ऐसे में अगर हम पर सिर्फ इसलिए हमले शुरू हो गए कि हम महाराष्ट्र के हैं , और हमें वहीं जाकर गुजर - बसर करना होगी , तो क्या महाराष्ट्र हम लोगों की भूख को सहन कर पाएगा ? क्या वहां हमें रोजगार का कोई जरिया मिल पाएगा ? राज ठाकरे क्या उन लोगों की जिम्मेदारी नहीं लेंगे , जो महाराष्ट्र के बाहर रह रहे हैं ? हमारा माई - बाप कौन ? या हमें अपनी लड़ाई यहीं लड़कर जीतनी होगी ? यदि ऐसा हुआ तो कई राज्य इसी आग में झूलसकर रह जाएंगे। स्थानीय निवासियों को रोजगार में प्राथमिकता की मांग करना वाजिब लगता है , लेकिन दूसरों को मात्र इसलिए दुत्कार देना कि वे बाहर के हैं। मुझे ठीक नहीं लगता। सत्ता पाने के लिए शांतिपूर्ण और विकास की ओर ले जाने वाले विकल्पों का चयन होना चाहिए न कि नफरत पर आधारित राजनीति का। {रवि भजनी भोपाल से }
नवभारत टाईम्स से साभार